By Manoj Kumar Tiwari
श्रावस्ती लखनऊ से तकरीबन 180 किमी दूर नेपाल सीमा पर स्थित है। इतिहास में श्रावस्ती को कौशल क्षेत्र की दूसरी राजधानी के तौर पर जाना जाता था। मान्यता है कि भगवान राम के पुत्र लव ने इसे अपनी राजधानी बनाया था। वहीँ भगवान बुद्ध ने भी यहाँ अपने जीवन के 25 साल व्यतीत किये थे। श्रावस्ती नेपाल से आने वाली गेरुआ नदी के दुसरे हिस्से, राप्ती नदी, जिसे इतिहास में अचिरावती के नाम से जाना जाता था, के किनारे बसा नगर है। बौद्ध और जैन दोनों ही धर्मो के लोगों का तीर्थ स्थान श्रावस्ती गौतम बुद्ध से जुड़ी कई प्राचीन कहानियों का जीवित प्रमाण है।

यहाँ के तकरीबन दो सौ एकड़ में फैले हरे-भरे जंगल का नाम जेतवन है। इस जंगल में अलग-अलग जगहों में हुई खुदाई में भगवान बुद्ध के काल के कई प्राचीन नगरों से संबधी जानकारी प्राप्त हुई है। हालाँकि अभी तक मात्र चार में से एक ही हिस्से की खुदाई और जीर्णोद्धार का काम हो सका है। जिसकी मुख्य वजह स्थानीय लोगों का बौद्ध धर्म से सरोकार का न होना है और उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग का ढीला रवैया है।
सहेट-महेट
Sahet Mahet
श्रावस्ती में सहेट-महेट नाम के दो नगर हैं, जिनके बारे में बौद्ध ग्रंथों में कई कहानियां वर्णित हैं। सहेट नगर का वह हिस्सा था जो सुंदर और रमणीय था। वहीँ महेट नगर का वह हिस्सा जो उलट-पलट गया था। बुद्ध के समय में श्रावस्ती भारतवर्ष के 6 सबसे बड़े नगरों में से एक था. इतिहास में ये नगर हर दृष्टि से उस युग में काफी धनवान था एवं यहां के निवासी भगवान् बुद्ध के भक्त हुआ करते थे। चीनी यात्री फाहियान और ह्वेनसांग ने भी श्रावस्ती के दरवाजों का जिक्र अपनी पुस्तकों में किया था।
पीपल का ऐतिहासिक पेड़
Shravasti
श्रावस्ती में पीपल का एक प्राचीन पेड़ है, जो लोहे के खम्भों के सहारे टिका हुआ है। स्थानीय लोगों का मानना है कि इसी पीपल के पेड़ के नीचे बुद्ध स्थानीय नागरिकों को उपदेश देते थे। पीपल के इसी पेड़ के आसपास कई नगरीय अवशेष भी हैं, जो इसके गौरवशाली इतिहास को बयान करते हैं। जापान, श्रीलंका, थाईलैंड, चीन और दुनिया के अन्य बौद्ध धर्मालंबी जब भी श्रावस्ती आते हैं, यहाँ जरूर आते हैं।
शांति का सन्देश देता घंटा
Bell Tower
श्रावस्ती में जापान के सहयोग से एक विशाल घंटा लगाया गया है जो मधुर ध्वनि विश्व शांति का सन्देश देती है। हालाँकि यहाँ इसके रखरखाव में कमी देखने को मिलती हैं। यहां के स्थानीय लोग इस स्थान को घंटाघर कहते हैं। आप भी जब श्रावस्ती आये तो इस घंटे पर संधान करके विश्वशांति की कामना जरूर करें।
आधुनिक महामंगोल मंदिर
Maha Mongol Temple
इस मंदिर का निर्माण वर्ष 2000 के करीब हुआ था। ये श्रावस्ती की सबसे आधुनिक मंदिर है जिसके अंदर प्रवेश करते ही आपको विदेशों में बने भव्य बौद्ध मंदिरों सा अनुभव होने लगेगा। तकरीबन 100 एकड़ जमीन में फैले मंदिर के प्रवेश द्वार के सामने बुद्ध की भव्य प्रतिमा बनी है जिसे 8 किमी दूर स्थित इकौना कस्बे से भी देखा जा सकता है। प्रतिमा के निर्माण के बाद से यहाँ आने वाले पर्यटकों की संख्या में बढोतरी हुई है। यहाँ बनी स्वच्छ पानी की नालियां, हरे-भरे पेड़ स्वयं में शांति एवं शीतलता का अनूठा संगम हैं। यहाँ का शांत वातावरण किसी को भी मंत्रमुग्ध कर ले। इस स्थान का पूर्ण संचालन विदेशी ट्रस्ट के हाथों में है। यहाँ किसी को भी पूरी जांच के बाद ही प्रवेश मिलता है। अंदर पहुँचने पर सीमित लोगों को एक साथ बैठाकर विश्वशांति की कामना, शपथ दिलाने का काम आदि भी विदेश बौद्ध भिक्षु ही करते हैं। यहाँ स्थापित बुद्ध की सभी प्रतिमाएं स्वर्ण रंग की हैं जिनका मनमोहक सौन्दर्य देखते ही बनता है।
पर्यटकों के ठहरने की व्यवस्था
Sravasti for Tourists
श्रावस्ती बौद्ध स्तूप, जंगल और मंदिर वाला स्थान है। हर साल यहाँ काफी संख्या में विदेशी पर्यटक आते हैं एवं ज़्यादातर विदेशी मेहमान यहाँ लम्बे समय तक रुकते हैं जिनके लिए यहाँ दो होटल है।
वहीँ कम खर्च में श्रावस्ती घूमने वालों के लिए यहाँ पीडब्‍ल्यूडी के इंस्पेक्‍शन बंगले, बर्मीज टेंपल रेस्ट हाउस, चाइनीज टेंपल रेस्ट हाउस और जैन धर्मशाला मौजूद है।
कैसे पहुंचे श्रावस्ती 
रेलयात्रियों को यहाँ से 20 किमी दूर बलरामपुर रेलवे स्टेशन पर उतरना होता हैं। वहीँ सरकारी रोडबेज बसें और अन्य प्राइवेट परिवहन से भी आसानी से श्रावस्ती पहुँचा जा सकता है। लखनऊ रेलवे स्टेशन कई रेलगाड़ियाँ गोंडा होते हुए बलरामपुर जाती है, जहाँ से भी आप श्रावस्ती पहुँच सकते हैं। यहाँ एक एयरपोर्ट भी है लेकिन उसका इस्तेमाल ज्यादातर आपातकालीन उड़ानों के लिए ही होता है।