Saibaba says:
क्यों हमें प्रतिदिन उनके नाम का गायन आतुरता एवं निष्ठा के साथ करना चाहिए ?
भगवान हमें सही भरोसे का प्रेमपूर्वक स्मरण दिलाते हैं जो निष्ठा प्रदान कर सकती है ।
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वर्तमान काल में कोई भी निष्ठा पूर्वक ईश्वर के नाम का उच्चारण नहीं करता है ।
ईश्वर की जरा सा भी चर्चा करने पर बहुत से लोग तर्क करते हैं । वे सोचते हैं कि वे इसके लिए पर्याप्त श्रेष्ठतर हैं । वे सोचते हैं कि दैवत्व को केवल वही जान सकते हैं जो धर्मग्रंथों का प्रेम एवं निष्ठापूर्वक अध्ययन करते हैं ।
सामान्यतः क्योंकि तुम्हारे पास एक जिह्वा है जो फिसल सकती है, अतः ईश्वर अथवा उनके नाम के विरुद्ध आक्षेप का निरूपण न हो । यहाँ नाव में सवार एक राजा, मन्त्री और सेवक की कथा है; चारो ओर विस्तृत जल के दृश्य पर सेवक भयभीत हो गया ।
यथार्थतः उसके घबराहटपूर्ण झल्लाहट से स्वयं नाव अस्तव्यस्त हो जाने वाला था । इसलिए मन्त्री ने उसे कस कर पकड़ा और जल में धक्का दे दिया तथा कई बार डुबकी दिया और जब वह चिल्लाया, "नाव, नाव," तो उसे नाव में वापस चढ़ा लिया ।
अब वह यह जान गया कि नाव में वह तूफ़ानी जल से सुरक्षित है । ईश्वर में विश्वास द्वारा रक्षा और सुरक्षा का अनुभव प्राप्त करने लिए सांसारिक जीवन में कठिन परीक्षा के कष्टभोग की प्रतीक्षा मत करो ।
अपने सम्पूर्ण कार्यकारी अवधि के जंजाल में ईश्वर के नाम और रूप को अपना सखा, मार्गदर्शक और अभिभावक के रूप में आत्मसात करो ।
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ENGLISH TEXT IS GIVEN BELOW :
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Why should we chant His Name intensely and sincerely everyday? Bhagawan lovingly reminds us the true hope that faith can bring. (THIS IS THE THOUGHT FOR TODAY, 01 AUGUST 2016)
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Presently, nobody chants the name of God sincerely. Many argue at the slightest mention of God.
They think they are superior enough for that. The Divine can be known only by those who study the scriptures sincerely and lovingly.
Simply because you have a tongue and it can wag, do not cast aspersions against the Lord or His Divine Name.
There is the story of a king, the minister and the servant going in a boat. The servant panicked at the sight of water all round; in fact his panic tantrums were about to upset the boat itself.
So the minister caught hold of him, pushed him into the water, dipped him a number of times and then when he cried, “The boat, the boat,” he was hoisted back.
Once in the boat he knew he was safe from the stormy waters. Do not wait to suffer the ordeals of worldly life to realise the security and safety of faith in God.
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