Sunday 13 December 2015

Intolerance or tolerance - Some thoughts

See my thoughts on Tolerance in India:-

आज देश में सहिष्णुता के नाम पर जो कुछ हो रहा है उससे देश की छवि को गहरा आघात पंहुच रहा है जिसमे हमारे देश के सम्मानित मीडिया व विपक्ष दोनो का ही रोल संदेह के घेरे में आता है क्योंकि हमारा सक्रिय मीडिया तब कहां चला जाता है जब इसी तरह के हमले बहुसंख्यकों पर होते हैं और एक भी संवेदनशील मीडिया हाउस एक छोटी सी भी क्लिप नहीं दिखाता उक्त घटना पर और दुसरी तरफ किसी अल्पसंख्यक समुदाय के पूजा स्थल में अगर चोरी भी हो जाए तो सीधा बगैर आरोप तय हुए बहुसंख्यक समुदाय को कटघरे में खडा करके इतनी मीडिया ट्रायल की जाती है कि बस पुछो नहीं. यह सरासर अन्याय है देश के करोडों बहुसंख्यकों के साथ।

यानि जानबूझकर भडकाने का काम तो इन्ही कारगुजारियों से भी होता है जबकि भारत का बहुसंख्यक हमेशा से “वासेदेव कुटुम्बकम” में विश्वास रखने वाला है और यही कारण भी है कि यह दुनिया के हर कोने में बसा हुआ है और आजतक कभी भी अपने पथ से भटका नहीं जैसा कि पिछले कई दशकों से एक अन्य समाज का युवा पुरी तरह से पथभष्ट होकर अनैतिक व अमानवीय कार्यों में लिप्त होता जा रहा है झूंठी धर्मान्धता के लिए जिससे कभी भी ना उक्त समाज व मानवता का ना भला हुआ है और ना कभी होगा। उल्टा सारी दुनिया के अन्य समाजों की घृणा का पात्र बनाते जा रहे हैं । उक्त समाज के शुभ चिन्तकों व विचारकों को आगे आकर उन सभी भटके हुए अपने युवाओं का सही से मार्ग दर्षण करना चाहिए।

अगर हम दादरी घटना का जिक्र कर रहे है तो फिर हम केरल व रामपुर युपी में घटी घटनाओं का जिक्र न करके अपनी गैर इमानदारी का परिचय नही दे रहे हैं. क्या धर्मनिर्पेक्षता केवल भारत देश के बहुसंख्यक पर ही लागू होती है और बार बार हम बहुसंख्यकों को कटघरे में खडा करके उनकी भावनाओं का भडकाने का काम नही कर रहे हैं। हम उक्त प्रकार की हर दुर्घटनाओं की कडी निन्दा करते हैं और हम मानते है कि सभी समाजों में कट्टरता को जन्म दिलाने में हमारे देश की तमाम राजनैतिक पार्टीयों का हाथ हमेशा से रहा है इसमें कांग्रैस का सबसे बडा रोल रहा है जो हमेशा से वोटबैंक की राजनीति करती आयी है। काग्रेस के लिए सत्ता पर काबिज होना ज्यादा सर्वोपरि रहा है बजाय देशहित में सोचने के।

दुसरी तरफ वर्तमान में देश की कमान संभालने वाली भाजपानीत सरकार है जिसके कन्धे पर पहले से ही हिन्दुवादी होने का ठप्पा लगा हुआ है यानि कुछ करती है तो बदनाम और कुछ भी ना करे तो भी बदनाम। झोकि हम समझते हैं उचित नहीं है।घटना घटती है युपी हिमाचल व केरल में . जहां पर सत्ता पर काबिज विपक्ष की सरकारों और ठीकरा फोडा जा रहा है भाजपा की केन्द्र सरकार पर जबकि राज्य की सुरक्षा की जिम्मेदारी

राज्य सरकार की होती है। अब आप ही बताऐं यह कहां तक तर्क संगत है।हाल ही में बंगलादेश की मश्हुर लेखिका श्रीमती तसलीमा नसरीन जी का कहा एकदम 100फीसदी सत्य साबित हो रहा है कि “हिन्दुस्तान में धर्मनिर्पेक्षता का मतलब केवल बहुसंख्यकों का यानि हिन्दु विरोध करना है”।
हां हम इस बात से इत्तफाक रखते है कि मौजुदा केन्द्र सरकार के हाथों में देश की कमान है जिम्मेदारी है देश को सहेज कर रखने की ।यह हम सबको समझना अतिआवश्यक है कि भारत देश सभी का है जिस भी समुदाय धर्म व पन्थ के नागरिक या लोग रहते हैं।हमें किसी की भी भावनाओं को आहत करने का कोई अधिकार नही है। हमें हर हाल में एक दुसरे का सम्मान करते हुए आगे बढना है तभी देश दुनिया के उच्च कोटि के देशों की पंक्ति में खडा हो पायेगा।

किसी के बसकी बात नही कि कोई किसी को भारत देश से ज्ुादा कर पाए यानि यह बिल्कुल असम्भव है कि हमारा भारत देश किसी समुदाय या धर्म विषेश विहीन हो जाए।अतः देश में घृणा फैलाने वाले चाहे वो किसी भी समाज का क्यों न हो भारत सरकार को उनके खिलाफ उचित व फौरी कार्यवाही करके उक्त प्रकार की घटनाओं पर तुरन्त प्रभाव से प्रभावी कदम उठाऐ ताकि किसी को कुछ भी बकने का मौका ही ना मिले।कहने भर से काम नहीं चलने वाला क्योंकि सलाह पर अमल कम होता है

कानुन के डर से ही इस तरह के शरारती तत्वों की अनैच्छिक कारगुजारियों पर लगाम लगाया जा सकता है।अन्यथा भारत सरकार ने जो माहौल विस्वास का स्थापित किया है सारे विश्व में को भी धक्का लग सकता है।
हाल में भारत सरकार ने कुछ एक कदम विपक्ष को बेचैन करने वाले कुछ ठोस कदम उठाने का एलान करना . हमें लगता है यह उसी का नतीजा है कि विपक्ष बौखला उठा है और अपने सर्मथित मीडिया की मदद से किसी भी छोटी सी घटना को इतना बडा रूप दिलवाया जा रहा है कि पता नही भूतकाल में जैसे कभी उनके शासनकाल में कभी घटी ही नही।हमने तो देखा 1984 में निर्दोष सिख्खों का किस तरह बेरहमी से खात्मा करवाया गया था इसी अपने आपको धर्मनिर्पेक्ष कहने वाली देश पर 60 सालों तक राज करने वाली संवेदनशील कांग्रेस पार्टी ने और आजतक कोई न्याय नहीं मिलने दिया।

क्योंकि वर्तमान भारत सरकार ने स्वतन्त्रता के सुत्रधार अग्रणी नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के परिवार की मांग को मन्जुर करते हुए उनसे ज्ुाडे हुए तथ्यों को उजागर करने व कालाधन वापस लाने बाबत जो ठोस कदम उठाने के प्रति जो प्रतिबध्धता दिखााई है पिछले 1।5 साल में . हमें लगता है कि कांग्रेस का असली चेहरा देश व दुनिया के सामने उजागर हो जाएगा

अगर ऐसा हुआ तो के डर से यह सब ड्रामा रचवाया सा लगता है क्योंकि यह सारा देश पहले से ही जानता है इस सबके पीछे केवल और केवल कांग्रेस का ही हाथ है और कालाधन भी इन्ही के नेताओं के पास पाया जाएगा।साहित्यकारों का सम्मान लौटाना भी इसी कडी का हिस्सा मालुम पडता हैं हमें अन्यथा कितने हमारे सम्मानित एवं संवेदनशील साहित्यकारों ने केरल गुडगांवा मेरठ व रामपुर युपी आदि में अल्पसंख्यकों दवारा मारे गए बहुसंख्यकों की निर्मम हत्याओं पर अपने सम्मान लौटाए थे। यानि हमारे साहित्यकार भी कमोवेश भारत देश में आजतक होती आयी मौकापरस्ती की राजनीति का हिस्सा बनते जा रहे हैं जो बिल्कुल समाज व देशहित में नहीं है। उनके लिए हर सत्ताधारी राजनैतिक दल एक समान होना चाहिए न कि किसी के हाथ की कठपुतली बनकर रह जाना व दुनिया के सामने अपना हाष्य का पात्र न बनें ।
आप हमारे विचारों से असहमत भी हो सकते हैं मगर हमारे इस छोटे से प्रयास को प्रोत्साहित करने हेतू अपनी प्रतिक्रिया हमारे निम्मलिखित इमेल पर अवश्य भेजें। धन्यवाद सहित

हजारी लाल पाठक
एक स्वतन्त्र विचारक

हमारा इमेल है : hlal.pathak@gmail.com
धन्यवाद सहित जय हिन्द

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