Thursday, 18 February 2016

Just for knowledge sake


शोभा डे नाम की एक प्रख्यात लेखिका की टिप्पणी -
"मांस तो मांस ही होता है,
 चाहे गाय का हो,
या बकरे का,
या किसी अन्य जानवर का......।

फिर,
 हिन्दू लोग जानवरों के प्रति अलग-अलग व्यवहार कर के
क्यों ढोंग करते है कि बकरा काटो,
पर, गाय मत काटो ।
ये उनकी मूर्खता है कि नहीं......?"
.
जवाब -1.
             बिल्कुल ठीक कहा शोभा जी आप ने ।
 मर्द तो मर्द ही होता है,
        चाहे वो भाई हो,
या
पति,
या
बाप,
या
बेटा ।
फिर, तीनो के साथ आप अलग-अलग व्यवहार क्यों करती हैं ?

क्या सन्तान पैदा करने,
या यौन-सुख पाने के लिए पति जरुरी है ?
भाई, बेटा, या बाप के साथ भी वही व्यवहार किया जा सकता है,

 जो आप अपने पति के साथ करती हैं ।

ये आप की मूर्खता और आप का ढोंग है कि नहीं.....?

जवाब-2.
            घर में आप अपने बच्चों और अपने पति को खाने-नाश्ते में दूध तो देती ही होंगी, या चाय-कॉफी तो बनाती ही होंगी...!
जाहिर है, वो दूध गाय, या भैंस का ही होगा ।
          तो, क्या आप कुतिया का भी दूध उनको पिला सकती हैं, या कुतिया के दूध की भी चाय-कॉफी बना सकती हैं..?
             तो, दूध तो दूध, चाहे वो किसी का भी हो....!!
       ये आप की मूर्खता और आप का ढोंग है कि नहीं......?
.
प्रश्न मांस का नहीं, आस्था और भावना का है ।
 जिस तरह, भाई, पति, बेटा, बेटी, बहन, माँ, आदि रिश्तों के पुरुषों-महिलाओं से हमारे सम्बन्ध मात्र एक पुरुष, या मात्र एक स्त्री होने के आधार पर न चल कर भावना और आस्था के आधार पर संचालित होते हैं,
उसी प्रकार गाय, बकरे, या अन्य पशु भी हमारी भावना के आधार पर व्यवहृत होते हैं ।
              जवाब - 3.
एक अंग्रेज ने स्वामी विवेकानन्द से पूछा - सब से अच्छा दूध किस जानवर का होता है ?

स्वामी विवेकानंद - भैँस का ।

अंग्रेज - परन्तु आप भारतीय तो गाय को ही सर्वश्रेष्ठ मानते हैं न.....?
स्वामी विवेकानन्द कहा -
आप ने "दूध" के बारे मे पुछा है जनाब, "अमृत" के बारे में नहीं,
 और दूसरी बात,
आप ने जानवर के बारे मेँ पूछा था ।
गाय तो हमारी माता है,
 कोई जानवर नहीं ।

इसी विषय में एक सवाल :-
"Save tiger"
कहने वाले समाज सेवी होते हैं
और
"Save Dogs"
कहने वाले पशु प्रेमी होते हैं ।
तब,
"Save Cow" कहने वाले कट्टरपन्थी कैसे हो गये.....?

इसका जवाब, अगर किसी के पास हो, तो बताने की ज़रूर कृपा करे ।
 
.
.Rajinder Jindal

No comments: