(((((( मां त्रिपुर सुंदरी की साधना ))))))
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सीता स्वयंवर के बाद परशुराम बहुत आहत, खिन्न और दुखी थे. भगवान राम ने उनकी चुनौती स्वीकार कर उनके धनुष की डोरी चढा दी थी. इस घटना से महायोद्धा परशुराम का सारा घमंड सबके सामने चूर चूर हो गया था.
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परशुराम ने अपने पहले किये गये कामों को देखा तो उन्हें लगा कि इतनी वीरता दिखाने, हिंसा करने, जन्म से ब्राह्मण होने के बावजूद क्षत्रियों जैसा आचरण अपनाने का कुल नतीजा केवल इतना ही मिला कि आज एक क्षत्रिय युवक ने मुझे सबके सामने नीचा दिखा दिया.
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परशुराम ने फैसला कर लिया कि अब वह हथियारों को हाथ न लगायेंगे. धनुष बाण फरसा, तलवार जैसे अस्त्र शस्त्र छोड़ शास्त्र की शरण में जायेंगे. बल तो है ही ज्ञान भी लेंगे, पहले जो पाप हो गये उनके पछतावे के लिये कठोर तप करेंगे.
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शास्त्रों की शिक्षा बिना गुरु के कैसे होगी ? ऐसा सोचते हुए वे किसी योग्य गुरू की तलाश में निकल पड़े. रास्ते में उन्हें एक अधपगला सा साधु मिला. यह दिखता तो अस्तव्यस्त था पर उसके चेहरे पर अद्भुत तेज था. परशुराम को लगा इससे कुछ बातचीत करनी चाहिये.
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परशुराम ने उससे उसका नाम इत्यादि पूछा तो उसने परशुराम में कोई रुचि न दिखाई. परशुराम का स्वभाव पहले ही जैसा था. अपनी उपेक्षा देख वे साधु पर भड़क उठे और उसे बुरा भला कहने लगे. साधु सब सुनता रहा पर बोला कुछ नहीं.
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परशुराम को लगा हो न हो यह कोई बहुत पहुंचा हुआ तपस्वी है इसलिये हाथ जोड़ कर अपना पूरा परिचय देने के बाद बोले, मुनिवर स्वभाव वश मैंने कुछ गलत कह दिया हो तो मेरी गलती क्षमा करें और मुझे कोई बेहतर गुरु मिल सके ऐसा रास्ता दिखाइये.
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साधु बोला, मैं देवगुरु वृहस्पति का भाई संवर्त हूं, लगातार तपस्या में लगे रहने के चलते नहीं चाहता कि कोई मेरा ध्यान भटकाये सो इस तरह पागल सा बना रहता हूं. फिलहाल मेरे पास तुम्हें ज्ञान उपदेश देने का समय नहीं है. तुम गंधमादन पर्वत पर दत्तात्रेय के पास जाओ.
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परशुराम गंधमादन की ओर चल पड़े. उन्हें पता चला कि दत्तात्रेय मां त्रिपुर सुंदरी के साधक हैं. उन्होंने सोचा मां त्रिपुर सुंदरी तंत्र और शक्ति की देवी हैं, मैं शक्ति साधक रहा हूं मुझे दत्तात्रेय से दीक्षा लेना बहुत बढिया रहेगा.
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गंधमादन पर दत्तात्रेय मुनि का आश्रम बहुत विशाल और सुंदर था. परशुराम आश्रम पहुंचकर दत्तात्रेय मुनि की कुटिया के भीतर चले गये. वहां परशुराम ने देखा कि मुनि एक बेहद सुंदर युवती के साथ बैठे हैं और सामने ही मदिरा भरा बड़ा सा पात्र रखा है.
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परशुराम ने सोचा, अरे यह मैं कहां आ गया, ऐसे गुरु से क्या कल्याण होगा. वे पीछे मुड़ने ही वाले थे कि हंसने के साथ किसी ने उन्हें पुकारा, आओ, आओ परशुराम, हिचको नहीं. तुम्हें संवर्त ने मेरे पास भेजा है न. कल्याण की लालसा से आये हो. आओ बैठो.
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परशुराम सकुचाते हुये भीतर आये, बैठ गये. पर शंका के भाव उनके चेहरे से अभी गया नहीं था. दत्तात्रेय बोले, जिन चीजों को तुम देख रहे हो परशुराम, इस आश्रम के बहुत से साधु और साधक उसे देखकर आश्रम छोड़ कर कर चले गये. मैंने उन्हें नहीं रोका. उनमें श्रद्धा की घोर कमी थी.
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तुम श्रद्धा भाव ले कर आये हो, श्रद्धा का मतलब है कि जिसके प्रति श्रद्धा हो उसके दोष देखने की बुद्धि ही उत्पन्न न होने दो. इसलिये तुम इन पर ध्यान न दो. संसार में मुक्ति का रास्ता एक ही है. अपनी इंद्रियों को वश या नियंत्रण में रखना.
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यह सब चीजें मैं अपने पास इसलिये रखता हूं कि इनके करीब होने पर भी मैं अपनी इंद्रियों को अपने वश में रख सकूं. इंद्रियों को जीत लिया तो समझो सब जीत लिया. सचाई जान कर परशुराम मुनि दत्तात्रेय के चरणों में गिर पड़े.
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दत्तात्रेय ने परशुराम को समझाया कि मां त्रिपुर सुंदरी की आराधना में लग जाओ. वही तुम्हारे सारे मनोरथ पूरे करेंगी.
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उन्होंने परशुराम को मां त्रिपुर सुंदरी की उपासना की तांत्रिक विधि, रहस्य समझाये, तत्वज्ञान दिया और दीक्षा तथा आशीर्वाद दे कर एकांत साधना के लिये महेंद्र पर्वत पर भेज दिया.
स्रोत : त्रिपुर रहस्य
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सीता स्वयंवर के बाद परशुराम बहुत आहत, खिन्न और दुखी थे. भगवान राम ने उनकी चुनौती स्वीकार कर उनके धनुष की डोरी चढा दी थी. इस घटना से महायोद्धा परशुराम का सारा घमंड सबके सामने चूर चूर हो गया था.
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परशुराम ने अपने पहले किये गये कामों को देखा तो उन्हें लगा कि इतनी वीरता दिखाने, हिंसा करने, जन्म से ब्राह्मण होने के बावजूद क्षत्रियों जैसा आचरण अपनाने का कुल नतीजा केवल इतना ही मिला कि आज एक क्षत्रिय युवक ने मुझे सबके सामने नीचा दिखा दिया.
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परशुराम ने फैसला कर लिया कि अब वह हथियारों को हाथ न लगायेंगे. धनुष बाण फरसा, तलवार जैसे अस्त्र शस्त्र छोड़ शास्त्र की शरण में जायेंगे. बल तो है ही ज्ञान भी लेंगे, पहले जो पाप हो गये उनके पछतावे के लिये कठोर तप करेंगे.
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शास्त्रों की शिक्षा बिना गुरु के कैसे होगी ? ऐसा सोचते हुए वे किसी योग्य गुरू की तलाश में निकल पड़े. रास्ते में उन्हें एक अधपगला सा साधु मिला. यह दिखता तो अस्तव्यस्त था पर उसके चेहरे पर अद्भुत तेज था. परशुराम को लगा इससे कुछ बातचीत करनी चाहिये.
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परशुराम ने उससे उसका नाम इत्यादि पूछा तो उसने परशुराम में कोई रुचि न दिखाई. परशुराम का स्वभाव पहले ही जैसा था. अपनी उपेक्षा देख वे साधु पर भड़क उठे और उसे बुरा भला कहने लगे. साधु सब सुनता रहा पर बोला कुछ नहीं.
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परशुराम को लगा हो न हो यह कोई बहुत पहुंचा हुआ तपस्वी है इसलिये हाथ जोड़ कर अपना पूरा परिचय देने के बाद बोले, मुनिवर स्वभाव वश मैंने कुछ गलत कह दिया हो तो मेरी गलती क्षमा करें और मुझे कोई बेहतर गुरु मिल सके ऐसा रास्ता दिखाइये.
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साधु बोला, मैं देवगुरु वृहस्पति का भाई संवर्त हूं, लगातार तपस्या में लगे रहने के चलते नहीं चाहता कि कोई मेरा ध्यान भटकाये सो इस तरह पागल सा बना रहता हूं. फिलहाल मेरे पास तुम्हें ज्ञान उपदेश देने का समय नहीं है. तुम गंधमादन पर्वत पर दत्तात्रेय के पास जाओ.
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परशुराम गंधमादन की ओर चल पड़े. उन्हें पता चला कि दत्तात्रेय मां त्रिपुर सुंदरी के साधक हैं. उन्होंने सोचा मां त्रिपुर सुंदरी तंत्र और शक्ति की देवी हैं, मैं शक्ति साधक रहा हूं मुझे दत्तात्रेय से दीक्षा लेना बहुत बढिया रहेगा.
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गंधमादन पर दत्तात्रेय मुनि का आश्रम बहुत विशाल और सुंदर था. परशुराम आश्रम पहुंचकर दत्तात्रेय मुनि की कुटिया के भीतर चले गये. वहां परशुराम ने देखा कि मुनि एक बेहद सुंदर युवती के साथ बैठे हैं और सामने ही मदिरा भरा बड़ा सा पात्र रखा है.
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परशुराम ने सोचा, अरे यह मैं कहां आ गया, ऐसे गुरु से क्या कल्याण होगा. वे पीछे मुड़ने ही वाले थे कि हंसने के साथ किसी ने उन्हें पुकारा, आओ, आओ परशुराम, हिचको नहीं. तुम्हें संवर्त ने मेरे पास भेजा है न. कल्याण की लालसा से आये हो. आओ बैठो.
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परशुराम सकुचाते हुये भीतर आये, बैठ गये. पर शंका के भाव उनके चेहरे से अभी गया नहीं था. दत्तात्रेय बोले, जिन चीजों को तुम देख रहे हो परशुराम, इस आश्रम के बहुत से साधु और साधक उसे देखकर आश्रम छोड़ कर कर चले गये. मैंने उन्हें नहीं रोका. उनमें श्रद्धा की घोर कमी थी.
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तुम श्रद्धा भाव ले कर आये हो, श्रद्धा का मतलब है कि जिसके प्रति श्रद्धा हो उसके दोष देखने की बुद्धि ही उत्पन्न न होने दो. इसलिये तुम इन पर ध्यान न दो. संसार में मुक्ति का रास्ता एक ही है. अपनी इंद्रियों को वश या नियंत्रण में रखना.
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यह सब चीजें मैं अपने पास इसलिये रखता हूं कि इनके करीब होने पर भी मैं अपनी इंद्रियों को अपने वश में रख सकूं. इंद्रियों को जीत लिया तो समझो सब जीत लिया. सचाई जान कर परशुराम मुनि दत्तात्रेय के चरणों में गिर पड़े.
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दत्तात्रेय ने परशुराम को समझाया कि मां त्रिपुर सुंदरी की आराधना में लग जाओ. वही तुम्हारे सारे मनोरथ पूरे करेंगी.
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उन्होंने परशुराम को मां त्रिपुर सुंदरी की उपासना की तांत्रिक विधि, रहस्य समझाये, तत्वज्ञान दिया और दीक्षा तथा आशीर्वाद दे कर एकांत साधना के लिये महेंद्र पर्वत पर भेज दिया.
स्रोत : त्रिपुर रहस्य
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