पटाखो कि दुकान से दूर हाथों मे,
कुछ सिक्के गिनते मैने उसे देखा...
एक गरीब बच्चे कि आखों मे,
मैने दिवाली को मरते देखा.
थी चाह उसे भी नए कपडे पहनने की...
पर उन्ही पूराने कपडो को मैने उसे साफ करते देखा.
हम करते है सदा अपने ग़मो कि नुमाईश...
उसे चूप-चाप ग़मो को पीते देखा.
जब मैने कहा, "बच्चे, क्या चहिये तुम्हे"?
तो उसे चुप-चाप मुस्कुरा कर "ना" मे सिर हिलाते देखा.
थी वह उम्र बहुत छोटी अभी...
पर उसके अंदर मैने ज़मीर को पलते देखा
रात को सारे शहर कि दीपो कि लौ मे...
मैने उसके हसते, मगर बेबस चेहरें को देखा.
हम तो जीन्दा है अभी शान से यहा.
पर उसे जीते जी शान से मरते देखा.
लोग कहते है, त्योहार होते है जि़दगी मे खूशीयो के लिए,
तो क्यो मैने उसे मन ही मन मे घूटते और तरस्ते देखा?
" आओ इस दीपावली में कुछ गरीब बच्चों के चहेरे पर रौशनी फैलाये "
कुछ सिक्के गिनते मैने उसे देखा...
एक गरीब बच्चे कि आखों मे,
मैने दिवाली को मरते देखा.
थी चाह उसे भी नए कपडे पहनने की...
पर उन्ही पूराने कपडो को मैने उसे साफ करते देखा.
हम करते है सदा अपने ग़मो कि नुमाईश...
उसे चूप-चाप ग़मो को पीते देखा.
जब मैने कहा, "बच्चे, क्या चहिये तुम्हे"?
तो उसे चुप-चाप मुस्कुरा कर "ना" मे सिर हिलाते देखा.
थी वह उम्र बहुत छोटी अभी...
पर उसके अंदर मैने ज़मीर को पलते देखा
रात को सारे शहर कि दीपो कि लौ मे...
मैने उसके हसते, मगर बेबस चेहरें को देखा.
हम तो जीन्दा है अभी शान से यहा.
पर उसे जीते जी शान से मरते देखा.
लोग कहते है, त्योहार होते है जि़दगी मे खूशीयो के लिए,
तो क्यो मैने उसे मन ही मन मे घूटते और तरस्ते देखा?
" आओ इस दीपावली में कुछ गरीब बच्चों के चहेरे पर रौशनी फैलाये "
No comments:
Post a Comment