Tourism - एक सफ़र- धर्म, आस्था, इतिहास और चमत्कार का (Part 1/4)
अनंतपुर मंदिर- तिरूअनंतपुरम, यहां का रक्षक है एक शाकाहारी मगरमच्छ
केरल के अनंतपुर मंदिर जो कि एक झील पर बना हुआ है। उसके बारे में मान्यता है कि इसकी पहरेदार एक शाकाहारी मगरमच्छ करता है। सुनने में भले ही थोड़ा अजीब लगे मगर ये सच है, इस मंदिर की झील में एक विशाल मगरमच्छ रहता है। जिसके बारे में कई कहानियां प्रचलित है।
केरल के अनंतपुर मंदिर जो कि एक झील पर बना हुआ है। उसके बारे में मान्यता है कि इसकी पहरेदार एक शाकाहारी मगरमच्छ करता है। सुनने में भले ही थोड़ा अजीब लगे मगर ये सच है, इस मंदिर की झील में एक विशाल मगरमच्छ रहता है। जिसके बारे में कई कहानियां प्रचलित है।
कहा जाता है कि सालों पहले साल 1945 में इस झील के मगरमच्छ को एक अंग्रेजी सिपाही ने गोली मार दी थी। मगर जल्द ही वहां दूसरा मगरमच्छ आ गया। साथ ही गोली मारने वाले सिपाही की भी दो-चार दिनों बाद सांप काटने से मौत हो गई थी। यहां रहने वाले मगरमच्छ को बबिया नाम से जाना जाता है जो पूर्णरूप से शाकाहारी है एवं सिर्फ मंदिर का प्रसाद ही खाता है वो भी पुजारी एवं भक्तों के हाथों से। बबिया यहां आने वाले किसी भक्त को और न ही झील के किसी अन्य जीव-जंतु को कोई कष्ट पहुंचाता है।
वहीं मंदिर की मूर्तियों के बारे में कहा जाता है कि यहां की सारी मूर्तियां 70 प्रकार की औषधि को मिलाकर बनी थी। मगर कुछ सालों पहले उन्हें पंचलौह में बदल दिया गया था। हालांकि अब फिर से उन्हें औषधि में परिवर्तित किया जा रहा है ।
नागोजा पीर की मज़ार- शाहबाद
यहां बाबा को चढ़ावे में मिलती है घड़ियां
यहां बाबा को चढ़ावे में मिलती है घड़ियां
हरियाण पंजाब के बार्डर इलाके शाहबाद से सात किलोमीटर दूर राष्ट्रीय राजमार्ग-1 पर स्थित नागोज बाबा की मज़ार है जिसमें आने वाले ज़ायरीन बाबा को अपनी मन्नत आदि के पूरे होने पर घड़ियां चढ़ा कर शुक्रिया अदा करते है। बताया जाता है कि हाइवे से सटे होने के कारण यहां से गुजरने वाले मुसाफिरों को हमेशा समय एवं अपनी सुरक्षा की चिंता रहती थी। उनका ये सफर बिना किसी परेशानी के कट जाए इसलिए लोगों ने बाबा को घड़ियां चढ़ानी शुरू की थी।
बाबा के बारे में भी कहा जाता है कि उनकी ऊँचाई 9 गज थी जिस कारण यहां बनी उनकी मज़ार भी 9 गज की है। वहीं मज़ार के भीतर बना शिव-पार्वती का मंदिर आपसी सौहार्द्ध का एवं आकर्षण का केन्द्र माना जाता है। मज़ार की पूरी देखभाल का जिम्मा स्थानीय रेडक्रॉस सोसाइटी के पास है। हर महीने यहां इतनी घड़ियां चढ़ती है कि उन्हें रख पाना संभव नही इसलिए रेडक्रॉस उन्हें बेचकर मज़ार की देखभाल का खर्च जुटाती है।
चायनीज काली- कोलकत्ता
यहां मां को चढ़ता है मोमोस का भोग
यहां मां को चढ़ता है मोमोस का भोग
सालों पहले व्यापार के सिलसिलें में चायना से भारत आये कुछ चायनीज परिवार कोलकत्ता के टागड़ा इलाके में बस गए थे। कोलकत्ता के इस इलाके को चायना टाउन भी कहा जाता है। उस समय उनमें से एक चायनीज परिवार के किसी बच्चे की तबियत काफी खराब हो गई थी। ऐसे में जब बात डाक्टरों के बस से बाहर हो गई तब उस परिवार ने घर के नजदीक एक पेड़ के नीचे बने मां काली के अपूर्ण मंदिरनुमा पूजास्थल पर मां काली से उनके बच्चे को स्वस्थ कर देने की मन्नत मांगी।
कुछ ही दिनों बाद बच्चा पूरी तरह स्वस्थ हो गया। मां का धन्यवाद स्वरूप उस परिवार ने अपने समुदाय के साथ मिलकर वहां मां काली के एक मंदिर का निर्माण करवाया। उन्होंने मां को भोग स्वरूप अपने पारंपरिक व्यंजन नूडल्स एवं मोमोस आदि चढ़ाए।
इस प्रकार चायनीज समुदाय द्वारा इस मंदिर के निर्माण से मंदिर का नाम ‘चायनीज काली‘ पड़ गया। पूरी दुनिया में काली मां का ये इकलौता मंदिर है जहां मां को भारतीय पारंपरिक प्रसाद के स्थान पर प्रसाद के रूप में इस प्रकार का भोग लगता है। हालांकि वर्तमान में यहां मां को अन्य प्रकार के भोग भी लगते है।
लेकिन प्राथमिकता में चायनीज व्यंजन एवं पकवान ही होते है। आज इस मंदिर के सैकड़ों भक्त है जिसमें स्थानीय चायनीज लोगों के अलावा वहां बसे बंगाली एवं बाकी हिन्दु समुदाय भी हैं।
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