Tuesday 3 January 2017

Tourism - कानपुर के ज़ायके, जहां की कुल्फी बदनाम है और लड्डू ठगता है

Tourism - कानपुर के ज़ायके, जहां की कुल्फी बदनाम है और लड्डू ठगता है

कभी अपने चमड़े के कारोबार के लिए मशहूर रहा कानपुर शहर कई और मामलों में भी खास है। गौरतलब है कि गंगा के किनारे बसा ये नगर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से भी बड़ा है। बात अगर कल-कारखानों वाले इस नगर के खानपान की करें तो स्वाद की मार्केटिंग भी यहाँ सालों पहले ही शुरू हो गई थी, जब किसी शख्स ने यहाँ के लड्डुओं को उसके स्वाद से ठगने वाला और कुल्फी को बदनाम करार कर दिया था। शायद इसलिए ही यहाँ के लड्डू ठगने वाले और कुल्फी ‘बदनाम कर देने वाले रहस्य नामों से लोकप्रिय है। और इनका स्वाद भी पूरे देश में मशहूर है। आपको बता दें कि फिल्म बंटी और बबली “ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको हमने ठगा नहीं” का थीम गाने  यहाँ के लड्डू की दुकान के नाम से ही लिया गया था।

ठग्गू के लड्डू-
thaggu ke laddoo
ये लड्डू शुद्ध खोया, रवा और काजू से बनाए जाते हैं । 50 साल पुरानी कानपुर की सबसे प्रसिद्ध लड्डुओं की दुकानों में से एक ठग्गू के लड्डू की दुकान के बोर्ड पर साफ़ लिखा है कि “ऐसा कोई सगा नहीं जिसको हमने ठगा नहीं”। और यक़ीनन इस दुकान के लड्डुओं का स्वाद आपको ठग लेगा। दुकान के मालिक प्रकाश पाण्डेय के अनुसार उनके पिता राम अवतार पांडेय ने ये दुकान शुरू की थी।

बदनाम कुल्फी-

कानपुर में ‘ठग्गू का लड्डू’ तो मशहूर है ही, अब बात करते हैं कानपुर के मशहूर बदनाम कुल्फी की। “ठग्गू के लड्डू” दूकान की ‘बदनाम कुल्फी’ भी काफी लोकप्रिय है। बदनाम कुल्फी के स्वाद के दीवाने बच्चे, बूढ़े और नौजवान सभी हैं। दुकान के मालिक प्रकाश पांडेय के मुताबिक बदनाम कुल्फी का स्वाद लेने यहाँ दूर-दराज से लोग आते हैं। इसके अलावा कानपुर घुमने आये लोग भी यहाँ आना नहीं भूलते। इस वजह से इस दुकान में हमेशा काफी भीड़ रहती है। गौरतलब है कि लोग इस बदनाम कुल्फी को चखने के लिए काफी धैर्य रखकर इंतजार भी करते हैं। क्योंकि कुल्फी तो यहीं की बदनाम है।

 आदर्श नमकीन के स्पेशल ढोकले –
adarsh ke namkeen at kanpur
कानपुर आए और आदर्श नमकीन का स्वाद न लें तो आपकी यात्रा अधूरी सी रह जाएगी। शहर के बिरहाना रोड पर आदर्श नमकीन की दुकान है। यहाँ की नमकीन पूरे प्रदेश में अपने अनमोल स्वाद के लिए मशहूर है। वहीँ यहां के स्पेशल ढोकले का स्वाद सबसे उम्दा माना जाता है। कानपुर के लोग अक्सर नाश्ते में ढोकला खाते हैं। स्पंज की तरह मुलायम मुंह में जाते ही घुल जाने वाला ये ढोकला, राई और नमक के के घोल एवं छुकी हुई मोटी हरी मिर्च की सजावट से बेहद खुबसूरत लगता है। अगर आप कानपुर में है तो, आपको सुबह के नाश्ते में ढोकला जरुर मिलेगा। यहाँ के स्पेशल पंचम दालमोठ भी बेहद जायकेदार है। जो इसी दुकान पर मिल जाएगा। लेकिन कानपुर की पहचान से जुड़ चुका ढोकला सबसे ज्यादा लोकप्रिय है।

गोपाल के खस्ते-
gopal ke khste at kanpur
यूँ तो हर शहर में आपको खस्ते मिल जायेंगे। लेकिन कानपुर के प्रसिद्ध “गोपाल का खस्ता” का स्वाद अपने आप में अनूठा है। नरौना चौराहे के ये खस्ते अन्य शहरों के खस्तों के मुकाबले काफी अलग हैं। यहाँ स्पेशल भरवां खस्ते मिलते हैं जिनका स्वाद बेहद लज़ीज है। यहाँ के लोग अन्य ख्स्तों से इसकी तुलना जायज नहीं समझते है। मैदे के बने छोटे-छोटे खस्तों में चटपटे आलू एवं छोटे-छोटे दही बड़े भरे जाते हैं। उसके बाद पुदीना, हरी मिर्च और खटाई की जायकेदार चटनी और भीगी हरी मिर्च के साथ इसे परोसा जाता हैं, मुंह में जाते ही इसका पहला निवाला मन लूट लेता है।

बनारसी चाय-
banarsi tea stall at kanpur

इतना सब कुछ खाने के बाद अगर आप ने सन 1952 से कानपुर के मोतीझील के किनारे स्थित “बनारसी चाय की दुकान” की चाय नहीं पी तो आपके स्वाद का सफ़र अधुरा रह जाएगा। कहते है अगर आपने यहाँ की चाय की चुस्कियां नहीं लीं, तो फिर समझो उसने कानपुर में कुछ नहीं खाया। इसकी खासियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस दुकान से दिनभर में 5000 से ज्यादा कप स्पेशल चाय की बिक्री होती है। इस चाय को बनाने की विधि भी वाकई दिलचस्प है। चाय में पके हुए लाल दूध, स्पेशल चाय मसाला और दानेदार चाय की पत्ती का यूज होता है। दुकान के मालिक अनिल गुप्ता बताते हैं कि उनके दादा जी ने ये दुकान खोली थी, जिसे आज उनकी तीसरी पीढ़ी चला रही हैं। वह कहते हैं कि इस दुकान को एक भी दिन बंद नहीं किया जा सकता है। क्योंकि यहाँ की चाय से लोगों का दिन शुरू होता है।

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