Tourism - एक सफ़र- धर्म, आस्था, इतिहास और चमत्कार का भाग - (4/4)
दत्तात्रेय मंदिर- कालो डुंगर, कच्छ
एक आवाज पर दौडे़ चले आते हैं। सैकड़ों सियार
एक आवाज पर दौडे़ चले आते हैं। सैकड़ों सियार
हिन्दु धर्म के त्रिदेव भगवान ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश की विचारधारा के संगठित रूप में प्रचलित भगवान दत्तात्रेय को पशु-पक्षियों एवं प्रकृति से बड़ा लगाव था। शायद इसलिए ही उन्होंने अपने गुरू के रूप प्रक्रति एवं पशु पक्षियों को चुना। प्रचलित मान्यता के अनुसार एक बार भगवान दत्तात्रेय ने कच्छ के रण में भ्रमण करते हुए एक सियार को भूख से तड़पते देखा और उनसे उसकी पीड़ा बर्दाश्त नहीं हुई। उन्होंने सियार की भूख मिटाने के लिए ‘ले अंग‘ कहकर स्वयं का शरीर उसे भोजन के लिए समर्पित कर दिया। मगर सियार ने उन्हें नहीं खाया। उसकी भक्ति देखकर भगवान दत्तात्रेय ने उसे वरदान दिया की अब इस रण में कोई भी सियार भूखा नहीं मरेगा।
गुरूदेव की इस बात को सैकड़ों बर्ष बीत चुके हैं लेकिन आज भी उनके भक्त रण के सियारों के लिए रण के कालो डुंगर स्थित भगवान दत्तात्रेय के मंदिर में खीर और लाल चावल का भोग सियारों के लिए चढ़ाते है।
भोग को ग्रहण करने के लिए पुजारी की एक आवाज पर वहां सैंकड़ों सियार दौड़े चले आते हैं। ये नजारा सचमुच बड़ा अदभुत होता है। जब पुजारी ‘ले अंग‘ कहकर उन सियारों को भोजन के लिए पुकारते है। इसे देखने के लिए रोज़ाना यहां पर्यटकों एवं श्रद्धालुओं की अच्छी-खासी भीड़ यहां लग जाती है। और देखते ही देखते सैकड़ों सियार पूरा प्रसाद मिनटों में चट कर वापस रण में गुम हो जाते है। गौरतलब है कि यहां मंदिर के पास इन सियारों के भोजन के लिए एक चबूतरा बना हुआ है, जहां प्रसाद रखकर इन सियारों को रोजाना आमंत्रित किया जाता है।
जगन्नाथ मंदिर- बेहटा गांव, कानपुर
मौनसून की भविष्यवाणी कर देता है ये मंदिर
मौनसून की भविष्यवाणी कर देता है ये मंदिर
कल का मौसम कैसा होगा, आने वाले मौनसून में ज्यादा बरसात आएगी या सूखा पड़ेगा। कुदरत के खेल से जुड़े ये कुछ ऐसे सवाल है जिनके जवाब देने के हमारे पास हजारों उपकरण मौजूद है। वहीं कानपुर के नजदीक बेहटा गांव में स्थित भगवान जगन्नाथ के एक साधारण मंदिर के बारे में मान्यता है कि ये मंदिर मौनसून के आने के पहले बरसात का मिजाज़ बता देता है।
दरअसल मौनसून के लगभग 7 दिन पूर्व इस मंदिर की छत टपकने लगती है। स्थानीय श्रद्धालुओं का तो यहां तक दांवा है कि टपकने वाली पानी की बूंदों के हिसाब से ही यह ज्ञात कर लिया जाता है कि बरसात की मात्रा कम होगी या अधिक। मंदिर के इतिहास एवं निर्माण के संबंध में प्राप्त जानकारी के अनुसार इस मंदिर में यहां भगवान जगन्नाथ उनके बड़े भाई बलराम एवं बहन सुभद्रा की मूर्ति स्थापित है एवं इसका निर्माण काल राजा हर्षवर्धन के समय का है एवं इसका अंतिम बार 11 वी शताब्दी में जीर्णोद्धार किया गया था।
फिलहाल मंदिर के इस राज को जानने-समझने में भारतीय पुरातत्व विभाग आईआईटी के कई छात्र शिक्षक एवं देसी-विदेशी वैज्ञानिक अपना पसीना बहा चुके है मगर कोई भी किसी प्रकार के ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच पाया है।
कनिपक्कम मंदिर- चित्तूर, आध्रप्रदेश
चमत्कारिक रूप से बढ़ रहा है मूर्ति का आकार
चमत्कारिक रूप से बढ़ रहा है मूर्ति का आकार
भारत में आपने कई खूबसूरत धार्मिक स्थलों के दर्शन किए होंगे। उन्हीं में से एक बहते हुए जल के बीच में बना ‘कनिपक्कम‘ मंदिर वाकई में अदभुत एवं चमत्कारी मंदिर है। यहां ‘कनिपक्कम‘ का शाब्दिक अर्थ बहते हुए जल के बीच में है। विघ्नहर्ता भगवान गणेश को समर्पित इस मंदिर के बिषय में कहा जाता है कि यहां भगवान गणेश की स्थित मूर्ति स्वतः प्रकट हुई थी। प्रचलित कहानी के अनुसार तीन दिव्यांग भाई अपनी छोटी सी जमीन पर जीवन यापन के लिए खेती करते थे।
पानी की समस्या से छुटकारे के लिए उन्होंने एक सूखे पड़े स्थानीय कुँए को दोबारा से खोदा। इस दौरान काफी गहराई में जाकर उन्हें पानी तो मिला मगर साथ ही एक बड़ी चट्टान भी मिली जिसे हिलाने पर वहां से खून की धार फूंट पड़ी। जल्द ही कुंए का पूरा पानी लाल हो गया। ऐसा होते ही तीनों दिव्यांग भाई पूरी तरह स्वस्थ हो गए। इस घटना की जानकारी जैसे ही बाकी स्थानीय लोगों तक पहुंची वहां लोगों का जमावड़ा लग गया।
और वहां से भगवान गणेश की एक मूर्ति निकली। फिर चोल राजवंश के तात्कालिक राजा कुलोतुंग चोल प्रथम 11वी सदी में वहीं जल के बीच में मंदिर का निर्माण करवाकर मूर्ति की स्थापना करवाई। बाद में वर्ष 1336 में विजयनगरम साम्राज्य के समय इसका विस्तार किया गया। मंदिर की मूर्ति के एक अन्य चमत्कार के बारें में मान्यता है कि यहां स्थित मूर्ति का आकार धीरे-धीरे बढ़ रहा है जिसके कई प्रमाण मिल चुके है।
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