Tourism - एक सफ़र- धर्म, आस्था, इतिहास और चमत्कार का - (भाग 3/4)
भारत में मौजूद विभिन्न धार्मिक स्थल एवं उनकी कहानियां वाकई में काफी आश्चर्यजनक एवं अजीबों-गरीब है। यहां बसे हर धर्म की अपनी अलग आस्था है, मान्यताएं हैं। अनेकों धार्मिक किस्से, किवदंतियां है। वास्तव में ये सारी कहानियां इतनी रोचक हैं इन धार्मिक स्थलों का ऐसा आकर्षण है कि हर व्यक्ति एक बार वहां जाकर स्वयं अनुभव करना चाहता है। हमारे साथ आप भी अनुभव कीजिए देश के कुछ चमत्कारी, रहस्मय धार्मिक के बारे में-
भंगाराम देवी मंदिर- बस्तर,छतीसगढ़
यहां भगवान को मिलती है उसकी गलतियों की सज़ा
बस्तर जिले के केशकाल नगर में स्थित भंगाराम देवी को नजदीक के 55 गांवों के देवी-देवताओं की अराध्य देवी है। हर साल भादो के महीने में यहां एक जात्रा का आयोजन किया जाता है। जात्रा में आस-पास के गांव के लोग बढ़-चढ कर हिस्सा लेते है। इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य ऐसे ग्रामीणों के लिए न्याय करने का होता है जिनकी मन्नतें उनके देवी-देवताओं ने पूरी नही की।
दरअसल प्रथा के अनुसार दुःखी ग्रामीण इस जात्रा में अपने उन देवी-देवताओं की मूर्तियां लेकर आते है जिनसे उन्होंने कोई मुराद मांगी और वो किसी कारणवश पूरी नहीं हुई। ऐसे में सालाना तौर पर यहां लगने वाली कथित अदालत में उन सभी देवी-देवताओं की ग्रामीणों द्वारा भंगाराम देवी से शिकायत, अदालती सुनवाई की जाती है। बाद में मंदिर के पुजारी के द्वारा निर्णय सुनाए जाते हैं। इस दौरान पुजारी पूरे दिन बेसुध लेटा रहता है। सजा के तौर पर देवी-देवताओं को मृत्यु दंड और महीनों से लेकर हमेशा के लिए निष्कासन की सजा दी जाती है।
दिन भर की प्रक्रिया के बाद दंड स्वरूप निष्कासित देवी-देवताओं को पास की खुली जेल में छोड़ दिया जाता है। वहीं मृत्युदंड प्राप्त मूर्तियों को खंडित कर दिया जाता है। मूर्तियों पर लदे गहने आदि भी वहीं छोड दिए जाते है। निष्कासित मूर्तियों को सजा की समाप्ति के बाद पूरे विधि-विधान से पुनः उनके गांव में प्रतिष्ठित कर दिया जाता है।
कमर अली दरवेश दरगाह,शिवापुर- पुणा
यहां बस बाबा का नाम ही काफी है।
क्या ये वाकई में संभव है कि ग्यारह लोग आस्था के भरोसे अपनी तर्जनी ऊंगली से 90 किलो की चट्टान उठाकर हवा में उछाल दें? शायद नहीं। लेकिन पुणे के नजदीक शिवपुर की कमर अली दरवेश दरगाह के ज़ायरीन आये दिन इस चमत्कार से रूबरू होते है। गौरतलब है कि कोई भी इंसान इस चमत्कार का स्वयं भी अनुभव कर सकता है।
लगभग 800 साल पहले पश्चिम के किसी कोने से तीन लोगों का परिवार शिवपुरी आकर बस गया था। जहां आज दरगाह है वहां दंगल के लिए पहलवानों का अखाड़ा हुआ करता था। वहां रखी दो चट्टानों को पहलवान अपनी कसरत आदि के काम में लाते थे। पहलवानों को देखकर पश्चिम से आए परिवार के मुखिया ने अपने बेटे को भी दंगल आदि के लिए प्रेरित करना चाहा। लेकिन बच्चे ने मना कर दिया क्योंकि उसका ध्यान अलौकिक शक्तियों को जानने-समझने में था।
अखाड़े का हिस्सा न बनने पर पहलवानों ने उसका मज़ाक उड़ाना शुरू कर दिया। इस बात से नाराज बालक कमर अली ने पहलवानों को चुनौती देते हुए कहा- “क्या मैं तुम्हें कमज़ोर और डरपोक लगता हूँ? तो जाओ आज के बाद तुम मेरा नाम लिए बगैर इस चट्टान को हिला नहीं पाओगे।“ उसके बाद वो बालक 18 वर्ष की आयु में गुज़र गया। मगर आज तक कोई भी इंसान उनके बनाए नियम, “ग्यारह लोगों एवं उनका नाम लेकर तर्जनी उंगली के अलावा किसी भी और तरीके से मौजूद 90 किलो की चट्टान को उठा नही पाया है।“ ये रहस्य इतना चौकाने वाला है कि देश-विदेश के वैज्ञानिक कई प्रकार के प्रयोग कर थक चुके हैं, मगर कोई भी इस रहस्य को सुलझा नहीं पाया है।
श्राईकोटी माता मंदिर- रामपुर, शिमला
इस मंदिर में अशुभ माना जाता है, पति-पत्नी का साथ
आमतौर पर हिन्दु-रीति रिवाजों के मांगलिक कार्यो में शादी-शुदा जोड़े को एक साथ होना अनिवार्य माना जाता है। मगर शिमला के रामपुर में स्थित श्राईकोटी माता के मंदिर में ऐसा करना किसी भी दंपत्ति के लिए अभिशाप बन सकता है। पति-पत्नी इस मंदिर में जा तो सकते है मगर अलग-अलग।
जनश्रुति के अनुसार अपने विवाह के लिए माता-पिता शिव एवं पार्वती के आदेश अनुसार जब भगवान गणेश एवं कार्तिक ब्रह्मांड का चक्कर लगाने गए और कार्तिकेन देरी से श्राईकोटी मंदिर वापस आए और वो पराजित हो गए। उन्होंने फिर कभी विवाह न करने का निश्चय किया। इससे दुःखी मां पार्वती ने क्रोधित होकर सभी विवाहितों के लिए यह नियम बना दिया कि अगर पति-पत्नी एक साथ यहां आएंगे तो उनका वैवाहिक जीवन नष्ट हो जाएगा।
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